देसी आंटी Xxx कहानी रिश्तेदारी में एक मेच्योर औरत की है. मैं उनके घर गया था. उन्हें देखकर मेरा मन उनकी चुदाई का हुआ. तो मैंने कैसे ये सब किया?
हैलो फ्रेंड्स, मैं राहुल आपको कविता जी की चुत चुदाई की कहानी सुना रहा था.
देसी आंटी Xxx कहानी के पहले भाग
चाची की भाभी की मटकती हुई गांड
में अब तक आपने पढ़ा था कि मैं कविता जी के मम्मों को जोर जोर से मसल कर मजा ले रहा था.
वे अपने मम्मों को जोर से मसले जाने से दर्द से कराह उठी थीं.
अब आगे देसी आंटी Xxx कहानी:
मैं कविता जी के स्तनों को बुरी तरीके से मसले जा रहा था. वो बहुत ज्यादा बेचैन हो रही थीं.
अब मैंने उनके ब्लाउज के अन्दर हाथ घुसा दिया.
वाह कविता के क्या मखमली बोबे थे. उनके स्तनों का स्पर्श पाकर मेरा लौड़ा और भी ज्यादा तन गया.
मैं ब्लाउज के अन्दर ही उनके स्तनों को मसलने लगा.
कविता जी और ज्यादा तड़पने लगीं.
कुछ देर बाद मैंने हाथों को ब्लाउज में से बाहर निकालकर उनके कंधों पर रख दिए और उनकी मजबूत मोटी सांवली कलाइयों को रगड़ने लगा.
कविता जी के हाथों को मसलते हुए उनके रसीले होंठों को मैं फिर से खाने लगा.
उनकी गर्मागर्म सांसें मुझे पागल कर रही थीं.
मैं समझ चुका था कि इनका भोसड़ा पूरी तरह से गर्म हो चुका है.
तभी मैंने एक हाथ नीचे ले जाकर पेटीकोट को ऊपर उठाया और कविता की चड्डी में घुसा दिया.
इससे कविता जी का भोसड़ा मेरे हाथ में आ गया जो बहुत ज्यादा गर्म और गीला हो रहा था.
तभी मैंने मेरा हाथ कविता के गर्मागर्म भोसड़े में घुसा दिया.
मेरे इस आक्रमण से कविता तिलमिला उठीं और दर्द से तड़पने लगीं.
तब तक मैं उनके बड़े भोसड़े को मुठ्ठी में भरकर मसलने लगा था.
इससे वे ज़ोर ज़ोर से सिसकारियां भरने लगीं- ओह राहुलजी, मार ही डालोगे क्या?
मैं- कविता जी, मैं क्या करूं? आपकी नीचे की चीज ही इतनी शानदार है.
मैं कविता जी के भोसड़े को कुरेदे जा रहा था और वो ‘आह आह ओह उफ्फ उफ्फ ओह …’ करती जा रही थीं.
मेरे इस आक्रमण को कविता जी ज्यादा देर तक झेल नहीं पाईं. कुछ देर बाद उनके भोसड़े ने मेरे हाथ में पानी उड़ेल दिया.
कविता – राहुलजी, मेरी हालत खराब हो रही है. अब जल्दी से अन्दर डाल दो, नहीं तो मैं मर जाऊंगी.
मैं- ठीक है कविता जी, मेरा लौड़ा भी अब आपके भोसड़े को खाने के लिए उतावला हो रहा है.
मैंने चारपाई बिछा दी और फिर भारी भरकम कविता को उठाकर चारपाई पर पटक दिया.
अजब गजब नज़ारा था, कविता जी अपने बड़े से भोसड़े में मेरा लौड़ा लेने के लिए अधीर हो रही थीं और मैं उनके भोसड़े का लावा पीने के लिए नंगा हो रहा था.
मैंने कुछ ही पलों में मेरी पैंट और शर्ट उतार दी. अब अंडरवियर में मेरा लौड़ा बाहर आने के लिए दरवाज़ा खटखटा रहा था.
मैं भी चारपाई पर चढ़ गया.
मेरे चढ़ते ही चारपाई चुर्र चुर्र करने लगी. मैंने अपने लिए चारपाई पर जगह बनाते हुए कविता जी की दोनों भरी भरकम गुद्देदार मजबूत सांवली टांगों को ऊपर करके फैला दिया.
कविता जी की साड़ी और पेटीकोट एक बार ही बार में खिसककर नीचे आ गए, जिससे भोसड़े के ऊपर पहनी हुई लाल चड्डी के दर्शन हो गए.
मैंने एक ही झटके में उनकी लाल चड्डी को निकालकर नीचे फैंक दिया.
अब कविता जी का काला सा बड़ा भोसड़ा मेरे सामने आ गया.
उनके भोसड़े के आस पास कली घनी झांटों का जंगल बन हुआ था. काली झांटें पूरी तरह से गीली थीं.
मैंने तुंरत ही मेरा मुँह कविता जी के काले बड़े भोसड़े पर रखा और भोसड़े की फांकों को खाने लगा.
कविता जी एकदम से सिहर उठीं. शायद पहली बार उनके भोसड़े पर मर्द की जीभ लगी थी.
मैंने काले भोसड़े की अन्दर गहराई में जीभ घुसा दी और वासना में तल्लीन होकर भोसड़े को चूसने लगा.
अब कविता जी की सिसकारियां लगातार बढ़ती जा रही थीं.
वो पागल सी हो रही थीं. ऐसा लग रहा था कि जैसे उन्हें चूत चटवाने का बिल्कुल भी अनुभव नहीं है या यूं कहें कि अब तक किसी ने उनकी चूत को चाटा और सहलाया ही नहीं था.
इस वजह से उनके भोसड़े ने जल्दी ही अपना गर्मागर्म लावा मेरे मुँह में भर दिया.
मैंने उनके गर्म लावे को सबड़ सबड़ कर पी लिया.
अब मुझसे सब्र नहीं हो रहा था.
मैंने तुरंत ही पहले तो उनकी भूरे रंग की साड़ी को पेटीकोट में से बाहर निकाला फिर पेटीकोट के नाड़े को खोला.
मैंने उनकी मोटी सांवली भारी गांड को हल्का सा उठाकर पेटीकोट और साड़ी को निकाल दिया और उनको नीचे से पूरी नंगी कर दिया.
उनकी सांवली जांघें मेरे सामने थीं, जिन पर भयंकर चर्बी चढ़ी हुई थी.
कुछ देर तक मैंने उनकी जांघों को रगड़ा, फिर मैं आगे बढ़ा और कविता जी के मखमल के जैसे काले पेट पर किस करते हुए उनके बड़े बड़े मम्मों को फिर से पकड़ कर मसल दिया.
मैंने कविता जी के ब्लाउज के बटन खोल दिए.
पूरे बटन खुलते ही कविता जी के बड़े बड़े चूचे उछाल मारने लगे.
मैं पूरी तरह से कविता जी पर टूट पड़ा और जोर जोर से उनके चूचों को मुँह में भरकर चूसने लगा.
वो पागल हुई जा रही थीं.
कविता जी की कामुक सिसकारियां अपने उफान पर थीं.
तभी उन्होंने सांवली मोटी मोटी कलाइयों से मुझे कसकर अपनी बांहों में जकड़ लिया.
मेरे पूरे शरीर का दबाव कविता जी के गदराए सांवले नशीले बदन पर था.
हम दोनों गुत्थम गुत्था हो रहे थे जिससे खाट और तेज चर्रर चर्र कर रही थी.
तभी मैंने अपने एक हाथ को पीछे ले जाकर मेरी अंडरवियर को खिसका दिया. लेकिन जांघों में मेरी अंडरवियर अटकी हुई थी.
मेरा लौड़ा घोड़े पर सवार हो चुका था. मेरा लौड़ा कविता जी के भोसड़े में सीधा वार करने लगा था.
मुझे कविता जी के मस्त स्तनों को चूसने में बहुत मज़ा आ रहा था.
अब तक मेरे थूक से कविता जी के बोबे पूरे गीले हो गए थे.
मैंने चूचों को चूस चूसकर और मसलकर हलका लाल कर दिया था.
मेरा हथियार काफी सख्त बन चुका था.
मैं इसे कविता जी के भोसड़े की सैर कराना चाहता था.
कविता जी का ब्लाउज अभी भी उनके सांवले जिस्म की पीठ में अटका हुआ था.
मैं नीचे खिसका और कविता जी के भोसड़े पर आ गया. कविता जी का भोसड़ा पहले से ही बहुत ज्यादा गीला हो रहा था.
मैंने उनकी मोटी मजबूत सांवली जांघों को पकड़कर चौड़ा कर दिया और उनके काले बड़े भोसड़े की फांकों को चौड़ा करके मेरा लौड़ा भोसड़े के बीचो-बीच खांचे में रख दिया.
मेरे हथियार का सुपाड़ा कविता जी के किले को भेदने के लिए तैयार था.
तभी मैंने दोनों हाथों से उनकी मोटी जांघों को पकड़ा और एक ही झटके में लौड़ा कविता जी के काले भोसड़े में ठोक दिया.
मेरा लौड़ा दनदनाता हुआ कविता जी के भोसड़े के हॉल के पेंदे में पहुंच गया.
वो एकदम से चीख उठीं- आह आह उम्मा ओह ओह उफ्फ ओह आह मर गई!
मैं पिला पड़ा रहा.
कविता जी दर्द के मारे बिलबिलाने लगीं- ओह राहुलजी … बाहर निकालो … नहीं तो मैं मर जाऊंगी.
लेकिन मैंने उनकी बात नहीं मानी और लौड़े को भोसड़े में से बाहर निकालकर फिर से उनके काले भोसड़े के छेद में घुसा दिया.
उनका चेहरा पसीने से लथपथ हो गया.
अब मैं ज़ोर ज़ोर से गांड हिला हिलाकर कविता जी के भोसड़े में लौड़ा ठोकने लगा.
वो आह आह उह ओह आह करती हुई मेरा लौड़ा अपने भोसड़े में घुसवा रही थीं.
धीरे धीरे मैं स्पीड बढ़ाने लगा जिससे खाट तेज आवाज करने लगी.
कविता जी धीरे धीरे शांत हो गईं और मेरे लौड़े को भोसड़े में ठुकवाने का मज़ा लेने लगीं.
मुझे कविता जी को पेलने में बहुत ज्यादा मज़ा आ रहा था.
मेरा लौड़ा मज़े से कविता जी के बड़े काले भोसड़े की गहराई को नाप रहा था.
कविता जी के बड़े बड़े चूचे ज़ोर ज़ोर से हिलने लगे थे.
लौड़े के लगातार खचाखच हमले की वजह से कविता जी का भोसड़ा जल्दी ही पस्त हो गया और भोसड़े में चूतरस लबालब भर गया.
अब मेरा लौड़ा कविता जी के भोसड़े के रस में सराबोर हो गया था.
मेरे लौड़े के उनके भोसड़े में घुसने निकलने से चूतरस भोसड़े से बाहर बहने लगा.
मैं रुक गया और भोसड़े में मुँह डालकर चूत रस को पीने लगा.
कविता जी निढाल होकर पड़ी हुई थीं.
तभी उनके भोसड़े में सुरसुरी हुई और उन्होंने मेरा मुँह भोसड़े में दबा दिया.
अब मैं ज़ोर ज़ोर से भोसड़े को पीने लगा.
कुछ देर बाद मैंने फिर से मेरे हथियार को कविता जी के भोसड़े के छेद में फंसाया और फुल स्पीड में उनको चोदने लगा.
पूरे घर में फव्हच फक्च फच्च फच्च की आवाजें गूंजने लगीं.
कविता जी की हालत खराब होने लगी.
शायद आज पहली बार ही उनकी इतनी अच्छी चुदाई हुई थी.
वो धीरे धीरे आह आह उह उह किए जा रही थीं.
मैं कविता मोटी मजबूत सांवली कलाइयों को अपने दोनों हाथों में दबाए हुए उन्हें चोद रहा था.
अब तक कविता जी का भोसड़ा भयंकर रूप से घायल हो चुका था.
उन्होंने फिर से उसमें पानी छोड़ दिया.
वो खाट पर निढाल पड़ी हुई थीं और मैं उनको पेलने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा था.
कविता जी के काले भोसड़े की गुलाबी झील भी बाहर आने लगी थी.
अब मेरा लौड़ा भी पानी छोड़ने वाला था.
कुछ ही पलों में मैंने कविता जी के काले भोसड़े को अपने सफेद रस से भर दिया.
झड़ने के बाद मैं थोड़ी देर कविता जी के ऊपर ऐसे ही पड़ा रहा.
मेरा लौड़ा अभी भी उनके भोसड़े में भीगा हुआ था.
कुछ देर बाद मैं खाट पर से उठा और कविता जी भी खड़ी हो गईं.
ब्लाउज अभी भी उनके कंधों पर अटका हुआ था, जिसमें उनके बड़े बड़े चूचे नीचे लटक रहे थे.
मेरा लौड़ा ठंडा होकर लटक रहा था.
तभी कविता जी कपड़े उठाने लगीं तो मैंने उनका हाथ पकड़ लिया.
वो चुप थीं.
शायद मेरे हथियार की खतरनाक चुदाई से वो बुरी तरह घायल हो चुकी थीं.
लेकिन मेरा लौड़ा अभी पूरी तरह से शांत नहीं हुआ था, उसमें अभी भी आग बाकी थी.
मैंने कविता जी को एक बार फिर से पकड़कर खाट पर पटक दिया.
वो कहने लगीं- सासू जी किसी भी वक्त आ सकती हैं.
मैं- वो अभी नहीं आएंगी, आप चिंता मत करो.
ये कहकर मैंने फिर से उनकी मोटी मोटी जांघों को पकड़ा और एक ही झटके में लंड उनकी भोसड़े में उतार दिया.
खाट फिर से ‘चू चू मैं मैं …’ करने लगी.
फिर घपाघप झटकों के साथ ही उनके भोसड़े और मेरे लौड़े के रस से कविता जी का भोसड़ा भर गया.
थोड़ी देर बाद हम दोनों उठ गए. अब हम दोनों ने जल्दी से कपड़े पहने.
मैं- बताइए कविता जी, कितना मज़ा आया?
कविता जी- जिंदगी में पहली बार किसी ने मुझे इस तरह से चोदा है. सच में आपने तो पूरी गर्मी ही बाहर निकाल दी. अगर फिर कभी मौका मिले, तो जरूर आना.
मैं- क्यों नहीं कविता जी, जरूर आऊंगा. आप जैसे माल को कौन नहीं चोदना चाहेगा.
थोड़ी देर बाद वर्षा जी और उनकी मां आ गईं.
मैं उनकी ओर देखकर मुस्कुरा दिया.
फिर मैं बाइक स्टार्ट करके आने लगा, तो वर्षा जी मेरे पास आ गईं.
मैंने उनसे कहा- आपकी भाभी गजब की माल हैं … मज़ा आ गया.
वर्षा जी हंस दीं और बोलीं- मुझे मत भूल जाना.
मैंने भी हंस कर उनके गाल चूम लिए.